:: What was in my mind ::
On this friendship day, me and my friends decided to meet with our real faces and discussed our lives. Don't you want to know what happened.... Read it in poetry form.
आज अपने पुराने दोस्तों से मिलने गई थी....
ना आँख में काजल डाला था
ना कान में पहनी थी बाली
एक पुरानी जींस और शर्ट मैंने डाली
ना सेल्फ़ी खिंचवानी थी
ना मेक-अप से ख़ुद को छिपाना था
मैं जैसी थी, मैं जो भी थी
वैसे ही मिलने जाना था
मिलना था मेरी रूहों से
जिनकी रूहों में मैं थी बसी
कुछ उनकी सुनके आना था
कुछ अपनी कहने जाना था
जो सोचा उससे ज़्यादा मिला
आज लगा की फिर मैं पूरी हुई
शुक्रिया मेरी उन रूहों का
जो आज फिर मुझ में आ मिलीं
ना नक़ाब था, ना कोई पर्दा
बस बातों में हम घुलते गए
कुछ कहते गए, कुछ सुनते गए
मन की परतों को चुनते गए
ना शिकवे किए
ना वादे किए
बस जो मन में था
वही बातें किए
जब चुप हो गए
तो थोड़ा रो गए
और फिर हँस लिए
और हम चल दिए
और यूँ इस तरह
आज फिर पूरा हुआ
दोस्ती का ये फ़र्ज़
आज दोस्ती के दिन।
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