:: What was in my mind ::
It is a poetry from my college days... I saw two swans flying above the sea, who were helping each-other in flying. Today human is fighting for his greed and selfishness and those birds gave me the message of love and caring.
हंसों का जोड़ा
यूँ ही एक दिन टहलने गई जब मैं सागर किनारे,
आसमां में उड़ता देखा एक हंसों का जोड़ा।
आँखों में उमंग, पंखों में शक्ति, मन में था साहस,
उस अथाह जलराशि से टकराने का,
अठखेलियाँ करते एक-दूसरे के आगे-पीछे,
चले जा रहे थे वे निरंतर अपने लक्ष्य की ओर।
कि तभी बोझिल होने लगी हंसिनी की चाल,
ख़त्म होने लगी उसके पंखों की शक्ति,
एक पल के लिए खो बैठी वो अपनी चेतना,
और जाने लगी उसी अथाह जलराशि में विलीन होने,
जिससे टक्कर लेने का प्राण उन दौनों ने लिया था कभी...
पर जैसे ही हंस ने पाया अपनी प्रिया को काल के गाल में जाते,
रोक न पाया...
अगले ही पल एक नीची उड़ान भर,
ले आया अपनी जीवन-तरंग को अपने पंखों पर बिठा...
उड़ता रहा उसे भी अपने साथ लेकर,
बिना सोचे कि कभी तो उसकी भी हार होगी...
जब न वो बच पायेगा और न उसकी प्रिया।
तभी लौट आई उस हंसिनी की चेतना,
अपने प्रिय को अपने समीप पाकर...
भूल गई उस लील जाने वाले शान्ति के कोलाहल को,
जो निगलने को आतुर था, उस नन्हें बेज़ान पंछी को,
अपने प्रिय की बाहों ने दी उसे पूरे संसार की ऊर्जा,
और फिर चल पड़ी वह, उसी के पीछे, उसी उमंग से,
जिस उमंग के साथ उन दौनों ने शरू की थी वो यात्रा।
मैं जितनी दूर तक देख पाई, दोनो उड़ते रहे,
देते हुए एक-दूसरे को सहारा...
बनते हुए अपने साथी की शक्ति,
पता नहीं वे अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाए या नहीं...
पर अनायास ही मेरे हाथ जुड़ गए,
करने लगी नमन मैं उन देवदूतों को,
जिनके अगाध प्रेम की शक्ति और कर्मठता,
दे रही थी प्रेरणा सम्पूर्ण मानव-जाति को,
जो अपने तुच्छ स्वार्थ की ख़ातिर,
दूसरे को मिटाने के लिए,
ख़ुद मर-मिटने को तैयार रहती है।
इतना सोचते-सोचते ही दूर आकाश में विलीन हो गए वो...
और रह गया मेरे सामने वही प्रलयंकारी शांत समुद्र।
4 Comments: