छाया है अँधेरा चहुँ ओर, चहुँ ओर,
चाहें हम कोई आके काटे बंधनों की डोर,
आम आदमी त्रस्त बिचारा, ना ठिया, ना ठोर,
अफ़सर-नेता सबको लूटें, घूमें बन के मोर,
फ्री है इनका बिजली-पानी, मकान-गाड़ियाँ-सैर,
फिर भी लेते रिश्वत मोटी, उलटे इनके पैर,
जनसेवक नहीं करते सेवा, करते अपनों की खैर,
इनका मालिक भूखा-नंगा, उससे रखते बैर,
बिदेसों से सीख के आते, कैसे चलायें देस,
लेकिन क्यों नहीं मिटने देते जांति-पाँति के क्लेस,
बिदेसों में योग्य को पॉवर, नो आरक्षण फेस,
भारत के ये रक्षित नेता नहीं बढ़ने देते देस,
डॉक्टर-इंजीनियर थर्ड डिवीज़न, आरक्षण है बेस,
कैसे मेरा देस बढ़ेगा जब टीचर का भी ये ही भेस,
ऊपर से नीचे तक सारे सिस्टम का यही केस,
आज इसीलिए पिछड़ा भारत, लगी है लम्बी रेस,
भारत में आम आदमी घायल, नेता का रेला सड़क पर,
एक नहीं कई गाड़ियां जातीं, इतना क्यों है नेता को डर,
सारी पब्लिक रोक दी जाती, क्यों नहीं रहता वो घर पर,
गलत धंधों को वो है करता, पुलिस का डंडा जनता पर,
बाढ़ में जनता नीचे रोये, नेता दिखे आसमां पर,
मदद जो करनी, दुःख जो बाँटना, तो क्यों नहीं आता जमीं पर,
दंगल करे फिर भी जेल में सुविधा, उसका जेल स्वर्ग से सुन्दर,
आम आदमी को सब ही नचायें बना रखा है बन्दर,
जो विरोध नेता का कर दे, उसके मुँह पर टेप,
नेता का चहेता खुला घूमता, चाहे किया हो रेप,
आज़ाद भारत की जनता बंदी, मीडिया पर पाबंदी,
नेता का गुणगान करे वो जिन्दा, ये है राजनीति गंदी,
रातों-रात आदेश हों पारित, मिसाइल गिरे जनता पर,
सरहद के सैनिक हैं मरते, पर तब चुप रहे सिकंदर,
जहाँ देश की स्त्री आशंकित, कैसे सोये ये घर के अंदर,
त्राहि-त्राहि जनता है करती, नेता है मस्त-कलंदर,
कुछ भी हो अच्छा देस के अंदर, उसका क्रेडिट ये खाये,
और बुरा हो या बात बिगड़े1