हे प्रभु! स्वप्न लोक की नगरी है ये,
सुन्दर, मायावी, लुभावने वाली,
जानती हूँ सच नहीं, ये स्वप्न है,
और अंत में रह जाएंगे हाथ खाली,
पर निद्रा के वश में प्रभुजी!
बस नहीं चलता मेरा,
तुझसे मिलन मेरा हो नहीं पाता,
जब होता सुबह सवेरा,
कब तुम आते, कब चले जाते,
मुझको एहसास नहीं है,
बस रहती है शिकायत स्वप्न में,
क्यों तू मेरे पास नहीं है,
हे मुरली-मनोहर! करो कुछ ऐसा,
ये रात आने न पाए,
भोर समय मैं रहूँ जागती,
ना कोई स्वप्न सताये।
बोले श्याम - जो ऐसा हो तो,
तुम थक जाओगे दिन में,
स्वप्न ना होंगे तो उल्लास ना होगा,
फिर क्या करोगे मन में,
भोर में जब आऊँगा मैं तो,
कौन कथा बांचोगे...
कुछ रचने को नहीं जो होगा तो,
कौनसा वर सांचोगे?
जो न मिलन होगा तम-सत का तो,
दीपक कहाँ रखोगे,
जो न परीक्षा होगी तेरे मन की तो,
आगे कैसे बढ़ोगे?
जो मैं रहुँगा साथ सदा ही तो,
कौन पुकारेगा मुझको,
कैसे सुनाओगे सपनों के किस्से,
जब साथ रखोगे मुझको,
ये कर्मभूमि है मित्र ओ मेरे,
तो कर्म पड़ेगा करना,
सपनों के संग भोर का ध्यान भी,
पड़ेगा तुमको ही रखना,
फिर आऊँगा मिलन को मैं भी,
जो झड़ा होगा तेरा आँगन,
सुनुँगा तेरी सारी कथाएँ,
और करुँगा मन को पावन,
करुँगा मन को पावन,
कि तू मुझे रोज़ बुलाना,
तभी तो भक्त और भगवान् का,
बुनेगा तानाबाना।
तभी तो भक्त और भगवान् का,
बुनेगा तानाबाना।
भावार्थ शब्दार्थ :
स्वप्न लोक की नगरी = इच्छाओं से भरा संसार,
सत्य = मोक्ष,
निद्रा = माया,
सवेरा = मृत्यु और नवजीवन की शुरुआत,
प्रभु का आना = मोक्ष,
रात = मायामयी संसार,
दिन-रात = जीवन (दिन - कर्म प्रधान, रात्रि - माया, स्वप्न - इच्छा),
कथा = जीवन-वृत्तांत,
तम = इच्छाएँ - आसक्तियाँ - मन,
सत = कर्म - शरीर - वास्तविकता,1